चंदौली : 19 फरवरी को देश ने हिंदी साहित्य के एक महान आलोचक को सदा के लिए खो दिया और इसी के साथ चंदौली जनपद को भी एक अपूर्णीय क्षति हुई. नामवर सिंह के रूप में चंदौली ने जिस बेशकीमती हीरे को 28 जुलाई 1926 को पाया था , वह बेशकीमती हीरा 19 फरवरी को सदा के लिए दुनिया को अलविदा कह गया. आइये चंदौली के इस बेशकीमती हीरे के जीवन परिचय पर एक संक्षिप्त नजर डालते हैं कि किस तरह से चंदौली के एक छोटे गाँव से दिल्ली तक का सफ़र नामवर सिंह ने तय किया.
धानापुर ब्लाक के जीयनपुर गाँव में नामवर सिंह की गूंजी थी किलकारी
हिंदी साहित्य जगत के महान आलोचक नामवर सिंह का जन्म चंदौली जनपद के धानापुर विकास खंड के जीयनपुर गाँव में 28 जुलाई 1926 को नागर सिंह के घर हुआ था. हालांकि उस समय चंदौली जनपद आस्तित्व में नहीं आया था और वाराणसी जनपद के अंतर्गत आता था. हिंदी का ककरहा उन्होंने अपने माता बागेश्वरी देवी, पिता नागर सिंह व प्राथमिक शिक्षा के दौरान सीखा. कक्षा 4 के अध्ययन के लिए नामवर सिंह माधोपुर गये. इस दौरान वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रसिद्ध नारायण सिंह व महान गांधीवादी कामता प्रसाद विद्यार्थी के सम्पर्क में आये.
कक्षा 6 में ही रच दी थी पहली कविता
प्राथमिक शिक्षा के दौरान से ही श्री सिंह को साहित्य की किताबें व अख़बार पढने में बेहद रूचि थी. श्री सिंह ने कक्षा 5 पूरी करते – करते गाँधी , नेहरु , मार्क्स, रूसो, टॉलस्टॉय आदि की किताबें पढ़ ली थी और इन सबका इतना प्रभाव पड़ा कि महज 12 वर्ष की उम्र में ही नामवर सिंह ने अपनी पहली कविता “पुनीत” की रचना कर दी थी. इसके बाद तो जैसे फिर कारवां रुकने का नाम ही नही लिया. कक्षा 8 में इन्होने “नीम के फूल” नाम से कविता संग्रह लिखा. हालांकि यह सभी कवितायेँ कहीं प्रकाशित नहीं हो सकी.
हजारी प्रसाद द्विवेदी की देख रेख में पूरी की पीएचडी
श्री नामवर ने अपनी प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा के उपरांत हाईस्कूल की शिक्षा के लिए वाराणसी चले गये और वहां पर यूपी कॉलेज से हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की. इंटरमीडिएट के उपरांत नामवर ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक की डिग्री 1949 में हासिल की तथा 1951 में गोल्ड मेडल के साथ मास्टर्स की डिग्री हासिल की और फिर हिंदी जगत के एक महान साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी की देख – रेख में पीएचडी की डिग्री हासिल की. इस दौरान आपकी कई कवितायेँ विभिन्न पत्रिकाओं व अख़बारों में प्रकाशित हुई.
चंदौली सीट से लड़ा था लोक सभा चुनाव
श्री सिंह ने पीएचडी की डिग्री पूरी करने के उपरांत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य किया इसके अलावा वह देश के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में भी शिक्षण का कार्य किये. जिनमे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय , जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी आदि प्रमुख हैं. इस दौरान श्री सिंह ने कई पत्रिकाओं के लिए लेख व कवितायेँ भी लिखीं. श्री सिंह वामपंथी विचारधारा के साहित्यकार थे और उनके एक कथन पर भी कभी कभी बड़ा विवाद खड़ा हो जाता था. श्री सिंह ने 1959 में चंदौली लोकसभा से सीपीआई के टिकट पट चुनाव लड़ा था मगर उस चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था.